भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला हरतालिका तीज इस साल 27 अगस्त, मंगलवार को मनाया जाएगा। इसकी शुरुआत एक दिन पहले यानी सोमवार को नहाय-खाय से हो चुकी है। परंपरा के अनुसार महिलाएं इस व्रत पर पूरे दिन जल तक ग्रहण नहीं करतीं और भगवान शिव-पार्वती की आराधना करती हैं।
क्यों किया जाता है यह व्रत?
मान्यता है कि सबसे पहले माता पार्वती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया था। कहा जाता है कि तपस्या के दौरान उनकी सहेलियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन माता पार्वती ने अपने अटल संकल्प से महादेव को प्राप्त किया। तभी से यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है।
शुभ मुहूर्त और व्रत का पारण
- व्रत का शुभ समय: प्रातः 5:56 बजे से 8:31 बजे तक
- पारण का समय: बुधवार को सूर्योदय के बाद
महिलाएं पूरे 24 घंटे निर्जला उपवास रखकर रात भर जागरण करती हैं।

पूजा कैसे करें?
हरतालिका तीज की पूजा संध्या समय यानी प्रदोष काल में की जाती है।
- मिट्टी या बालू से भगवान शिव, माता पार्वती और श्री गणेश की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं।
- इन प्रतिमाओं को केले के पत्तों पर रखकर चौकी पर स्थापित किया जाता है।
- माता पार्वती का श्रृंगार सुहाग सामग्री से किया जाता है।
- पूजा के दौरान व्रती महिलाएं हरतालिका व्रत कथा सुनती और भक्ति गीत गाती हैं।
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पूजा सामग्री की सूची
इस व्रत में प्रयुक्त सामग्री में शामिल हैं:
- मिट्टी और बालू
- केले के पत्ते
- बेलपत्र, शमी पत्र, धतूरा, आंक का फूल
- फल-फूल और पंचामृत
- दीपक, कपूर, चंदन, कुमकुम
- सुहाग का पूरा सामान (चूड़ी, सिंदूर, बिंदी, वस्त्र आदि)
- कलश, जनेऊ और नाड़ा
व्रत के नियम
- यह व्रत निर्जला और निराहार होता है।
- सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक अन्न और जल का सेवन वर्जित है।
- एक बार व्रत आरंभ करने के बाद इसे जीवनभर निभाना आवश्यक माना जाता है।
हरतालिका तीज को पति की लंबी उम्र, अखंड सौभाग्य और वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि के लिए सबसे फलदायी व्रत माना जाता है।












